31 अक्टूबर को चांदूर रेलवे में भव्य पिच्छिका परिवर्तन समारोह का आयोजन,स्थानीय लोगों के साथ विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु होंगे कार्यक्रम में शामिल

चांदूर रेलवे : सुभाष कोटेचा

पिछले चार माह से चांदूर रेलवे में मंगल चातुर्मास कर रहे दिगंबर जैन संत आचार्यश्री 108 विद्यासागरजी महाराज के अनुगामी तथा आचार्यश्री 108 आर्जवसागरजी महाराज के परम शिष्य मुनिश्री 108 महानसागरजी महाराज, और मुनिश्री 108 विदितसागरजी महाराज का भव्य पिच्छिका परिवर्तन समारोह रविवार 31 अक्टूबर 2021 को स्थानीय महावीर भवन, दिगम्बर जैन मंदिर में दोपहर 3 बजे से आयोजित किया जाएगा। जिसमें बड़ी संख्या में कई जैन धर्मावलंबी बंधु शामिल होंगे। पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम का मुख्य जुलूस स्थानीय महावीर भवन से सुबह ठीक 9 बजे से भव्य शोभायात्रा के रूप में प्रारंभ होगा। यहां से आझाद चौक, गांधी चौक से महावीर भवन में पहुंचेगा। यहां 3 बजे से पिच्छिका परिवर्तन समारोह का मुख्य कार्यक्रम प्रारंभ होगा। इस दौरान संयम के व्रत अंगीकार करने वाले श्रावक- श्राविकाओं को क्रमश: नवीन पिच्छिका देने व पुरानी पिच्छिका मुनिश्री से ग्रहण करने का सौभाग्य मिलेगा। समारोह के दिन सुबह भगवान का अभिषेक शांतीधारा, शांतीविधान, पिच्छिका रथोत्सह दोबहर को आचार्यश्रीजीं का चित्र अनावरन, दिपप्रज्वलन कर समारोह का आगाज होगा. जिसमें महीला मंडल द्वारा मंगलाचरण, सांस्कृतिक कार्यक्रम के पश्चात पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम होगा. साथ ही बाहर गाव से आये अतिथीयोंका सम्मान कार्यक्रम होगा. सभी कार्यक्रम के पश्चात सकल दिगंबर जैन समाज का सामूहिक स्नेहभोज होगा। इस समारोह में सभी जैन श्रावक श्राविका शामील होकर पुण्यलाभ ले. ऐसी बिनती चातुर्माच कमिटी एवं सकल दिगम्बर जैन समाज ने की है.

क्या है पिच्छिका परिवर्तनदिगंबर जैन साधु के पास तीन उपकरण के अलावा और कुछ भी नहीं होता। पिच्छिका, कमंडल और शास्त्र इन तीन उपकरणों के माध्यम से ही वे अपनी जीवन भर साधना करते रहते हैं, संयमोपकरण जिसे पिच्छिका कहते हैं, यह पिच्छिका मोर पंखों से निर्मित होती है, मोर स्वत: ही इन पंखों को वर्ष में तीन बार छोड़ते हैं उन्हीं छोड़े हुए पंखों को इकट्‌ठा करके श्रावकगण पिच्छिका का निर्माण करते हैं, पिच्छिका के माध्यम से मुनिराज अपने संयम का पालन करते हैं जब कहीं यह उठते हैं, बैठते हैं तब उस समय जमीन एवं शरीर का पिच्छिका के माध्यम से परिमार्जन कर लेते हैं, ताकि जो आंखों से दिखाई नहीं देते ऐसे जीवों का घात न हो सके। यह पिच्छिका उस समय भी उपयोग करते हैं जब शास्त्र या कमंडल को रखना या उठाना हो। जहां शास्त्र या कमंडल रखना हो वहां पर जमीन पर सूक्ष्म जीव रहते हैं जिन्हें हम आखों से नहीं देख सकते, तो पिच्छिका से उन जीवों का परिमार्जन कर दिया जाता है, ताकि उन्हें किसी प्रकार का कष्ट न पहुंचे। यह पिच्छिका इतनी मृदु होती है कि इसके पंख आंख के ऊपर स्पर्श किए जाएं तो वह आंखों में नहीं चुभते और जब इन पंखों में लगभग एक साल के भीतर यह मृदुता कम होने लगती है तो इस पिच्छिका को बदल लिया जाता है। इस कार्यक्रम को पिच्छिका परिवर्तन के नाम से जाना जाता है।

बातमी शेर करा

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